हॉब्स के चिन्तन में 'प्राकृतिक अवस्था'। हॉब्स के प्राकृतिक अवस्था सम्बन्धी विचार।
उत्तर—हॉब्स राज्य की उत्पत्ति से पहले की स्थिति को प्राकृतिक दशा का नाम देता है। उसने मानव स्वभाव के चित्रण के सिलसिले में मनुष्य को जो स्वार्थी, अहंवादी, संघर्षमय तथा इच्छाओं की पूर्ति में लीन बताया है उसके अनिवार्य परिणामस्वरूप प्राकृतिक अवस्था की कल्पना है।
हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक अवस्थां सतत् युद्ध की अवस्था के अतिरिक्त और कुछ हो नहीं
से सकती जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वार्थी प्रवृत्ति से प्रेरित होकर एक-दूसरे से युद्ध करता होगा। राज्य से पूर्व मनुष्य के किसी जीवन की कल्पना हॉब्स ने नहीं की है इसलिए सामाजिक नैतिकता व्यक्ति पशुता के ऊपर भला कैसे उठ सकता है? हॉब्स द्वारा वर्णित प्राकृतिक अवस्था पूर्णतः अराजकता की अवस्था है। यह अवस्था राज्य और उसकी बलशक्ति की उत्पत्ति के पूर्व थी। 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' का सिद्धांत लागू था। मनुष्य जो चाहता था, करता था तथा जिसे चाहता था, मार डालता था। चूँकि वह जीवन में अकेला था,
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अतः हमेशा भय और असुरक्षा से ग्रस्त रहता था। शक्तिशाली निर्बल व्यक्तियों के अधिकारों को हड़प रहे थे। सर्वत्र शक्ति, धोखाधड़ी और प्रवंचना का बोलबाला था। इस दशा में उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय, धर्म-अधर्म का कोई विचार नहीं था। हॉब्स के शब्दों में, "जब तक समस्त मानवों के ऊपर एक सामूहिक सत्ता नहीं रहती तब तक कोई कानून नहीं होता और जहाँ कोई कानून नहीं होता वहाँ कोई न्याय विद्यमान नहीं रह सकता। वहां उचित तथा अनुचित, न्याय तथा अन्याय की कोई धारणा अपना अस्तित्व नहीं रखती।" हॉब्स के मतानुसार प्राकृतिक दशा में उद्योग या कला-कौशल का विकास नहीं हो सकता क्योंकि को यह भरोसा नहीं है कि वह उससे प्राप्त हो सकने वाले लाभ का उपभोग कर सकेगा। इस
अवस्था में किसी प्रकार की संस्कृति, सभ्यता, भवन निर्माण, ज्ञान-विज्ञान, कला-साहित्य का विकास हो सकता। मनुष्य को सदैव भय और मृत्यु की आशंका बनी रहती है।
हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य का जीवन एकाकी, निर्धन, कुत्सित, पशुतुल्य तथा छोटा होता है।
Title | All Topic |
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लॉक का ज्ञान सिद्धान्त | (1) संवेदना से और (2) प्रत्यक्ष बोध से। |
लॉक का सम्पत्ति | लॉक सम्पत्ति की धारणा का प्रयोग संकुचित तथा व्यापक दोनों ही अर्थों में करता है। |
हॉब्स की प्राकृतिक अवस्था | सही है कि प्राकृतिक अवस्था का वह समाज वैसा भयावह नहीं था |
सामान्य इच्छा' का सिद्धान्त | रूसो के सामान्य इच्छा के सिद्धान्त का निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन किया जा सकता है |
यह एकाकी इसलिए होता है कि इस दशा में कोई किसी का अभिभावक, मित्र और रक्षक नहीं था, सब एक दूसरे के शत्रु थे। वाणिज्य, व्यवसाय, कला और उद्योग-धन्धों का विकास न होने की दृष्टि से इस जीवन में निर्धनता का साम्राज्य था। यह कुत्सित इसलिए था कि इसमें युद्ध, मारकाट, हिंसा और हत्या का बोलबाला था। यह जीवन पशुतुल्य इसलिए था कि मनुष्य आपस में जंगली पशुओं जैसा व्यवहार करते थे। यह छोटा इसलिए था कि किसी भी क्षण कोई शक्तिशाली, दूसरे व्यक्ति के जीवन का अन्त कर सकता था।
संक्षेप में, प्राकृतिक अवस्था 'सब की सबके विरुद्ध संघर्ष' की स्थिति थी। मनुष्य इस अवस्था में नरपशु और रक्त पिपासु थे, शत्रुओं का दमन करने, शक्ति बढ़ाने और यश प्राप्त करने के लिए सब प्रकार की हिंसा और हत्या का अवलम्बन करते थे। जीवन अवसादपूर्ण, गतिरोधमय और निस्सार था। हर क्षण कच्चे धागे से लटकती तलवार सिर पर नाचती रहती थी।
प्रश्न d (i) लॉक का ज्ञान सिद्धान्त।
उत्तर-लॉक के ज्ञान की पद्धति अनुभववादी एवं विवेकवादी है। उसकी मान्यता है कि अनुभव ज्ञान का स्रोत है। अनुभव के बिना ज्ञान की कल्पना नहीं की जा सकती है। लॉक के अनुसार मनुष्य के मस्तिष्क में जन्मजात कोई विचार नहीं होता। जन्म के समय मनुष्य का मस्तिष्क एक कोरे कागज की तरह होता है, जो भी विचार मनुष्य के मस्तिष्क में उठते हैं, वे अनुभव द्वारा ही उत्पन्न होते हैं। सभी विचारों की उत्पत्ति दो स्रोतों से होती है-
(1) संवेदना से और (2) प्रत्यक्ष बोध से। इन स्रोतों द्वारा प्राप्त अनुभव मनुष्य के मस्तिष्क में प्रवेश करता है तो बुद्धि द्वारा उसका विश्लेषण किया जाता है। इसके फलस्वरूप जटिल विचारों की उत्पत्ति होती है।
ये जटिल विचार स्वयं ज्ञान नहीं, बल्कि ज्ञान के साधन होते हैं। ज्ञान तब उत्पन्न होता है जबकि बुद्धि अपने विचारों की परस्पर तुलना करती है। इस सिद्धान्त के द्वारा लॉक ज्ञान की उत्पत्ति के विवेकमूलक तत्त्व का प्रतिपादन करता है। चूंकि विचारों के द्वारा ज्ञान होता है और सभी विचारों की उत्पत्ति अनुभव से होती है, इसलिए अनुभव से परे किसी ज्ञान की कल्पना नहीं की जा सकती है। अपने इसी विचार के कारण लॉक को अनुभववाद का प्रतिपादक कहा जाता है। संक्षेप में लॉक की अनुभववादी पद्धति में तीन मुख्य बातें हैं
प्रथम, ज्ञान की उत्पत्ति का एकमात्र स्रोत अनुभव है। द्वितीय, ज्ञान विवेकमूल होता है क्योंकि वास्तविक ज्ञान तभी प्राप्त होता है जबकि बुद्धि विचारों में पारस्परिक सम्बन्धों की स्थापना करती है। तृतीय, मनुष्य के ज्ञान का क्षेत्र उसके अज्ञान के क्षेत्र से बहुत छोटा होता है। लॉक के अनुसार मनुष्य एक असीम प्राणी है जो इस अनन्त असीम ब्रह्माण्ड की सभी बातों को जान नहीं सकता है। अतएव मनुष्य का ज्ञान उसके अज्ञान की तुलना में स्वल्प है।
लॉक ने इस अनुभववादी एवं विवेकमूलक पद्धति को अपनाकर राज्य की उत्पत्ति, राज्य के स्वरूप एवं शासन सम्बन्धी सिद्धान्तों की विवेचना की है।
प्रश्न d (ii) लॉक का सम्पत्ति पर विचार।
उत्तर-लॉक सम्पत्ति की धारणा का प्रयोग संकुचित तथा व्यापक दोनों ही अर्थों में करता है। . व्यापक अर्थ में सम्पत्ति से उसका तात्पर्य जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति से है और संकुचित अर्थ में सम्पत्ति का प्रयोग व्यक्तिगत सम्पत्ति के अर्थ में किया गया है।
लॉक की सीमित संवैधानिक धारणा का उद्देश्य अपनी सम्पत्ति की हिफाजत है। इससे स्पष्ट निष्कर्ष निकलता है कि व्यक्ति की सम्पत्ति का अधिकार प्राकृतिक है तथा समाज एवं सरकार की स्थापना से पूर्व का है। सम्पत्ति की परिभाषा में उन्होंने व्यक्ति की जिन्दगी, स्वतन्त्रताएँ तथा सम्पत्ति सबको शामिल किया, किन्तु कहीं-कहीं लॉक सम्पत्ति में केवल भूमि और समाज को शामिल करते हैं।
मनुष्यों के समाज में ऐसा कोई सर्वमान्य न्यायाधीश नहीं था जो प्राकृतिक विधि के अनुकूल सभी अभियोगों का निष्पक्ष निर्णय करे, अतः शान्ति की पूर्ण व्यवस्था करना कठिन था। प्राकृतिक विधि को लागू करने के लिए कोई कार्यकारिणी शक्ति नहीं थी, अतः अन्याय को पूर्णतः रोकना कठिन था। दोषी व्यक्ति दण्ड से बच निकलने की कोशिश करते थे, जिन्हें अपनी कोशिश में प्रायः सफलता मिल जाती थी, क्योंकि दण्ड को निष्पादित करनेवाली कोई शक्ति नहीं थी। लॉक ने उपर्युक्त असुविधाओं को ही प्राकृतिक अवस्था से नागरिक समाज में प्रवेश करने का आधार बनाया है। सही है कि प्राकृतिक अवस्था का वह समाज वैसा भयावह नहीं था
जैसा कि हॉब्स की प्राकृतिक अवस्था में देखने को मिलता है। परन्तु, दुर्भाग्यवश वह ऐसा समाज अवश्य था जिसमें शान्ति और सुरक्षा की पूर्ण स्थापना नहीं थी। इसकी यह असुविधाएँ उस अवस्था के समाज को नागरिक समाज से भिन्न करती थीं। मनुष्यों को उस अवस्था की आवश्यकता थी जिसमें वे असुविधाएँ न हों तथा प्राकृतिक नियमों के पालन से शान्ति और सुरक्षा की स्थापना होती हो। यही लॉक के सामाजिक समझौते की पृष्ठभूमि है। यह समझौता; लॉक के अनुसार, प्रत्येक मनुष्य का सभी मनुष्यों के साथ हुआ। चूँकि यह सभी मनुष्यों का सभी मनुष्यों के साथ हुआ, अतः यह सामाजिक था। मनुष्यों ने न्यूनतम प्रतिरोध का मार्ग अपनाया, जिससे यह सफल हो सका। इसी से राज्य की उत्पत्ति हुई।
प्रश्न e (i) रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धान्त क्या था? स्पष्ट कीजिए। रूसो की सामान्य इच्छा के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। रूसो की सामान्य इच्छा की अवधारणा।
उत्तर- रूसो का 'सामान्य इच्छा' का सिद्धान्त राजदर्शन को एक महान् देन है। आगामी विचारकों काण्ट, बोसांके आदि को इसी से प्रेरणा प्राप्त हुई। उसके इसी सिद्धान्त पर प्रजातन्त्र आधारित है। जोन्स के शब्दों में, "सामान्य इच्छा का विचार रूसो के सिद्धान्त का न केवल सबसे अधिक केन्द्रीय विचार है, अपितु यह उसका सबसे अधिक मौलिक और रोचक विचार है, ऐतिहासिक दृष्टि से यह राजनीतिक सिद्धान्त के क्षेत्र में उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण देन है।"
- रूसो के सामान्य इच्छा के सिद्धान्त का निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन किया जा सकता है
- सामान्य इच्छा का अर्थ- सामान्य इच्छा का शाब्दिक अर्थ सबकी इच्छा है। रूसो की सामान्य इच्छा का अर्थ विचित्र है, यह सामान्य इच्छा एक व्यक्ति की भी हो सकती है। यदि वह इच्छा सर्व कल्याण की भावना से प्रेरित हो।
- सामान्य इच्छा का विभाजन--रूसो के अनुसार इच्छाएँ दो प्रकार की होती हैं—'यथार्थ इच्छा', तथा 'आदर्श इच्छा' ।
- सामान्य इच्छा की परिभाषा-रूसो ने सामान्य इच्छा की परिभाषा करते हुए कहा है कि “मतदाताओं की संख्या से कम तथा उस सामाजिक हित की भावना से अधिक इच्छा सामान्य बनती है, जिसके द्वारा वे एकता में बँधते हैं।"
प्रश्न e (ii) रूसो के स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचारों का उल्लेख कीजिए। रूसो के स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचार।
उत्तर- रूसो ने अपने ग्रन्थ 'सामाजिक संविदा' में कहा है, "स्वतन्त्रता मानव का परम आन्तरिक तत्त्व है। इसका विनाश या अपहरण मानवता का विनाश है।" परन्तु स्वतन्त्रता का अर्थ बन्धनों का अभाव या स्वच्छन्दता नहीं समाज द्वारा बनाये गये सामान्य हित में नियमों का पालन करते हुए अपने अधिकारों का उपभोग करना है। यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छाचारी ढंग से कार्य करने लगता है
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